Friday, October 2, 2015

तलाश आम आदमी की

आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी 
दुष्यंत कुमार ने खूब ही कहा है कि.....

इस नुमाइश में मिला वह चीथड़े पहने हुए 
मैंने पूछा कौन, तो बोला कि हिन्दुस्तान हूं 

चुनावी माहौल में इस देश के प्रत्येक नेता की बस एक ही चिंता है,पीड़ा है,दुःख है कि किस तरह आम आदमी का भला हो,वह ऊपर उठे,तरक्की करे.

यह बीमारी छुआछूत की तरह अपने देश में आजादी के बाद बहुत तेजी से फैली है,किसी खतरनाक वायरस की तरह.प्रधानमंत्री से लेकर गली-मुहल्ले तक के नेता के किसी अवसर पर दिए गए भाषण का एक ही निचोड़ निकलता है कि आम आदमी के लिए बहुत कुछ करना है.

लेकिन सवाल यह उठता है कि आम आदमी होता कैसा है,कहाँ पाया जाता है?आम आदमी भी कुछ कम नहीं,किसी को नजर ही नहीं आता.अगर कभी हमें दिख भी जाए तो पूछना लाजिमी है कि वह कहां छुपा था.यह आर. के. लक्ष्मण के कार्टून का आम आदमी तो नहीं जो सीधे अखबार के पहले पन्ने पर दिख जाए.

चुनाव प्रचार के शोर में सारा जोर आम आदमी पर ही होता है.किसी नेता का भाषण सुनने वाले भी यही सोचते हैं कि वह कोई बेवकूफ किस्म का,दबा,कुचला आदमी होगा जिस पर बहुत जुल्म हो रहे हैं.नेता भी पूरा घाघ होता है,वह जानता है कि सामने जो उधार लाए गए श्रोता बैठे हैं,उन्हीं में से ज्यादातर आम लोग हैं.लेकिन उसे क्या फर्क पड़ता है?उसे तो बस उससे एक ही चीज लेनी है,उसका वोट.

कार्यकर्त्ता की मीटिंग में भी उसे बस एक ही बात की चिंता है कि अगर आम आदमी का वोट उसे मिल जाए तो वह वैतरणी पार कर जाए.बापू का अब ज़माना तो रहा नहीं कि कार्यकर्त्ताओं का उनसे जीवंत संपर्क हो.उन्हें तो बस नेता.मंत्री,कुरसी,सिफारिश,कमीशन,बूथ कैप्चरिंग आदि चीजें ही मालूम हैं,सो उन्होंने सोचा होगा कि आम आदमी जरूर कोई ख़ास आदमी होगा जो गायब हो गया है.

अब आम आदमी का कोई ख़ास हुलिया तो है कि अखबार में उसकी तलाश करने के लिए विज्ञापन दिया जाए.उसकी उम्र आजादी के बाद से स्थिर है,लंबाई समय के हिसाब से बढ़ती घटती रहती है.नजर देखने में ठीकठाक है परंतु दूरदृष्टि ठीक नहीं है,इसलिए कभी-कभार निकम्मा आदमी भी चुन लेता है.वैसे समझदार है परंतु खुद का भला बुरा नहीं समझता है,भोला और मासूम है,इसलिए वह आम आदमी है.

सो हमने भी एक दिन उस आम आदमी की तलाश शुरू कर दी.हर आते जाते को घूर-घूर कर देखने लगे.उसके लिए हर कहीं भटके.सरकारी बसों में लटके,सिनेमा की टिकट के लिए लाइन से लेकर,राशन की दुकान तक भटके.हर आदमी हमें आम आदमी जैसा कुछ-कुछ लगा,लेकिन पूरे यकीन से नहीं कह सके कि वही आम आदमी है.

एक आदमी सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते हुए मिला.हमने उससे बड़े विनयपूर्वक पूछा ‘भाई साहब आप कौन हैं?’ उसने घूरकर और सिगरेट का धुंआ हमारे चेहरे पर उड़ाते हुए कहा,पूछने का नक्को,अपुन भोली दादा का आदमी है,क्या?

लब्बो-लुआब यह कि हर कोई किसी न किसी का आदमी निकला.बस वो आम आदमी नहीं था.आखिरकार रहा नहीं गया और एक अखबार के पत्रकार से पूछा कि आम आदमी कहां पाया जाता है.पत्रकार यह सुनकर हंसने लगा,’आप इतना भी नहीं जानते.आम आदमी को नहीं पहचानते,फिर धीरे से बोला,अरे भाई आम आदमी अब ख़ास हो गया है.आजकल वह नेता हो गया है.’

हमने पूछा ‘वह जो टेलीविजन पर आता है,संसद में बोलता है,अखबारों में छपता है.चुनाव का मौसम हो तो वह बहुतायत से पाया जाता है और उसे हर कोई देख सकता है.मैंने पूछा,;ऐसा होता क्यूं है?’ वह बोला क्योंकि हर आम आदमी ख़ास होना चाहता है,जब ख़ास नहीं हो पाता तो उसका मुखौटा लगा लेता है.

और आम आदमी के नाम पर जो चिंता करते हैं,वे ख़ास आदमी होते हैं.परंतु उसके अंदर भी एक आम आदमी होता है जिससे वे हमेशा डरते हैं,क्योंकि जो आज ख़ास बने बैठे हैं,वे भी तो कल आम थे.उसकी बातों को तवज्जो देते हुए और चिंतन-मनन करते हुए घर की ओर चला तो बेख्याली में एक आदमी से टकरा गया.उसका चेहरा और चाल-ढाल देखकर कीच शक हुआ तो उससे पूछा,भाई साहब आप कौन से आदमी हैं?’

उसने झटके से जवाब दिया ‘आप हमको नहीं पहचानते? अरे भई हम आम आदमी हूँ.’इसके बाद उसने देश-विदेश की तमाम समस्याओं पर एक लंबा भाषण पिलाया और सतर्क रहने की हिदायत देकर चला गया.मेरी समझ में आ गया कि यही आम आदमी है जो आज नहीं तो कल ख़ास आदमी बन जाएगा और आम आदमी के बारे में लंबे-लंबे भाषण देगा और उसके बारे में चिंता करेगा.और बेचारा आम आदमी जहाँ है,जैसा है वही रहेगा और उसे कोई ढूंढ नहीं पाएगा.

21 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-10-2015) को "तलाश आम आदमी की" (चर्चा अंक-2117) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. जन प्रतिनिधि चुनने के पहले जनता को स्वर्णिम स्वप्न देखने का सुअवसर प्रदान करते हैं हमारे राजनेता लेकिन बाद में वह स्वर्णिम स्वप्न वे जनता से छीन लेते है ....

    ReplyDelete
  3. Aam aadmi yadi aan nahi rah khas ho jayega to ye dekh ke rajniti ke labboluaab kahan jayenge .....badhiya likhen.

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया लिखा है। आपने आम आदमी जब खास हो जाता है। तब वह सब के लिये अजनबी हो जाता है ।

    ReplyDelete
  5. सच में आम आदमी अब कहाँ मिल पाता है..बहुत सटीक व्यंग..

    ReplyDelete
  6. सच में आम आदमी अब कहाँ मिल पाता है..बहुत सटीक व्यंग..

    ReplyDelete
  7. कहाँ खो गया हैं आम आदमी.......... पता चले तो बताईएँगा ज़रूर
    हम भी तो देखे कैसा होता हैं आम आदमी

    ReplyDelete
  8. achcha likha hai , ise padkar Iqbal ka ek sher dhyan aa gaya,

    Khuda to milta hai, insaan hi nahin milta,
    ye cheez wo hai jo dekhi kahin-kahin maine

    ReplyDelete
  9. aalekh to sundar hai hi, lekin Dushyant sahab ke sher ne ismein chaar chaand laga diye:)

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर। आम आदमी की फिक्र किसे है।

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर। आम आदमी की फिक्र किसे है।

    ReplyDelete
  12. Start self publishing with leading digital publishing company and start selling more copies
    Publish ebook with ISBN, Print on Demand

    ReplyDelete
  13. तलाश आम आदमी की एक बहुत ही सार्थक रचना के रूप में प्रस्‍तुत हुई है।

    ReplyDelete
  14. बहुत ही सार्थक रचना ....

    ReplyDelete
  15. On Diwali and in the coming year... May you & your family be blessed with success, prosperity & happiness!

    ReplyDelete
  16. आम आदमी वो है जो हमेशा ठगा जाता रहा है ! कभी किसी के द्वारा कभी द्वारा !!

    ReplyDelete